Lok Kathaye Krishn Darshan
Lok Kathaye Krishn Darshan : बहिर एक सीधा-साधा किसान था। वह दिन भर खेतों में मेहनत स काम करता और शाम को प्रभु का गुणगान करता।
बहिर के मनकि चाहत थी। वह उडुपि के भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना चहता था। उडुपि दक्षिण कन्नड़ जिले का प्रमुख तीर्थ था। प्रतिवर्ष जब तीर्थयात्री वहां जाने को तैयार होते तो बहिर का मन भी मचल जाता कितु धन की कमी के कारण उसका जाना न हो पाता।
इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। बहिर ने कुछ पैसे जमा कर लिए। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने बहुत-सा खाने-पीने का सामान बाँध दिया। उन दिनों यातायात के साधनों का अभाव था। तीर्थयात्री पैदल ही जाया करते।
रास्ते में बहिर की भेंट एक बूढ़े व्यक्ति से हुई। बूढ़े के कपड़े फटे-पुराने थे और पांव में जूते तक न थे। अन्य तीर्थयात्री उससे कतराकर निकल गए किंतु बहिर से न रह गया उसने बूढ़े से पूछा
‘बाबा, क्या आप भी उडुपि जा रहे हैं?’
बूढ़े की आँखों में आँसू आ गए। उसने रोते हुए स्वर में उत्तर दिया ‘मैं भला तीर्थ कैसे कर सकता हूँ? मैं एक बहुत ही गरीब आदमी हूं मेरे पास तो पैसे भी नहीं है मेरा एक बच्चा तो बीमार है, और दूसरे बेटे ने से कुछ नहीं खाया।’
बहिर भला व्यक्ति था। उसका मन पसीज गया। उसने निश्चय किया कि वह उडुपि जाने से पहले बूढ़े के घर जाएगा।
बूढ़े के घर पहुँचते ही बहिर ने सबको भोजन खिलाया। बीमार बच्चे को दवा दी। बूढे के खेत, बीजों के अभाव में खाली पड़े थे। लौटते-लौटते बहिर ने उसे बीजों के लिए भी धन दे दिया।
जब वह उडुपि जाने लगा तो उसने पाया कि सारा धन तो खत्म हो गया था। वह चुपचाप अपने घर लौट आया। उसके मन में तीर्थयात्रा न करने का कोई दु:ख न था बल्कि उसे खुशी थी कि उसने किसी का भला किया है।
बहिर की पत्नी भी उसके इस कार्य से प्रसन्न थी। रात को बहिर ने सपने में भगवान कृष्ण को देखा। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा :
‘बहिर, तुम मेरे सच्चे भक्त हो। जो व्यक्ति मेरे ही बनाए मनुष्य से प्रेम नहीं करता, वह मेरा भक्त कदापि नहीं हो सकता।’
तुमने उस बूढ़े की सहायता की और रास्ते से ही लौट आए। उस बूढ़े व्यक्ति के रूप में मैं ही था । अनेक तीर्थयात्री मेरी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गए, सिर्फ तुमने ही मेरी बात सुनी।
में सदा तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम अपने स्वभाव से कभी भी दया, करुणा और प्रेम का का त्याग मत करना।’
शिक्षा Conclusion of Lok Kathaye Krishn Darshan
इस तरह से बहिर को तीर्थयात्रा का फल मिल गया था।
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