Krishna Story राक्षस तृणावर्त का अंत
Krishna Story राक्षस तृणावर्त का अंत : एक और जहा राक्षसी पूतना गोकुल में प्रवेश करने के बाद से गोकुल के लोग और नंद बहुत परेशान थे, कि पता नहीं कैसे गोकुल को दुष्ट राक्षसों की नजर लग गई है। अब उन्हें हर समय यही डर सताता था कि कहीं, कोई और राक्षस गोकुल पर हमला ना कर दे।
दूसरी तरफ जब से कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार मिला था। तब से । कंस का भी बुरा हाल था। कंस गुस्से से आगबबूला था। उसे विश्वास होने लगा था कि शायद कृष्ण ही वह बालक है, जिसके हाथों उसकी मृत्यु होनी है। अंततः कंस ने एक और राक्षस जिसका नाम तृणावर्त था, को बुलाया और उसे कृष्ण को मारने का आदेश देकर गोकुल भेज दिया।
उधर दूसरी ओर उस समय यशोदा बाल गोपाल कृष्ण को अपनी गोद में लेकर आंगन में बैठी खिला रही थी। अपनी मां के साथ खेलते हुए कृष्ण बहुत खुश थे। वह मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
कृष्ण तो स्वयं भगवान विष्णु का ही अवतार थे, इसलिए जानते थे की कुछ ही देर में राक्षस तृणावर्त यहां गोकुल में आ जाएगा। उन्हें पता था यदि उस समय मैं मैया यशोदा की गोद में रहूंगा, तो वह राक्षस मैया को भी चोट पहुंचा सकता है। यह सोचकर कृष्ण ने अपना वजन बढ़ाना शुरू कर दिया। कृष्ण धीरे-धीरे अपना वजन बढ़ाते जा रहे थे। जिस वजह से यशोदा के पैरों में दर्द होने लगा,और यशोदा ने कृष्ण को उनके पालने में लिटा दिया । अब यशोदा घर के काम से अंदर चली गई थी।
इसी समय राक्षस तृणावर्त ने एक बवंडर का रूप धारण कर गोकुल में प्रवेश किया। हाउ हाउ की आवाज कर धूल उड़ाता हुआ तृणावर्त पूरे गोकुल में तबाही मचा रहा था। ऐसा लग रहा था, मानो पूरा गोकुल धूल से ढक गया हो। आंखों में धूल जाने की वजह से लोग अपनी आंखें मलने लगे थे, और जल्द से जल्द अपने घरों को वापस जाने लगे थे। बवंडर इतनी तेज था कि कुछ घरों की तो छत उड़ गई थी। हवा की इतनी तेज तेज आवाज सुन के मां यशोदा घबराकर भागती हुई बाहर आई कि, पता नहीं इतनी तेज बवंडर में मेरे पुत्र का क्या हाल हुआ होगा। यही सोचते हुए मां यशोदा का बुरा हाल हो रहा था। बाहर आकर यशोदा ने देखा कि पालने में कृष्ण तो थे ही नहीं ही।
पालने में कृष्ण को ना देखकर यशोदा जोर जोर से चिल्लाने लगी “कहां गया मेरा कान्हा कहां गया मेरा कान्हा, और रोने लगी”।
बवंडर बने राक्षस ने तेज हवा के झोंके से कृष्ण को हवा में उड़ा दिया था, और बहुत ऊंचे ले जाकर उसने कृष्ण को जमीन पर पटकना चाहता था, लेकिन यह क्या कृष्ण ने तो अपने छोटे छोटे हाथों से राक्षस का गला ही पकड़ लिया और अपना वजन तेजी से बढ़ाने लगे वजन बढ़ने से और गला दबने से राक्षस दर्द से बेहाल हो गया था। उसे घबराहट होने लगी। वह दर्द से चिल्लाने लगा। और थोड़ी देर में राक्षस की आंखें बाहर को निकल आई और राक्षस ने प्राण त्याग दिए थे और नीचे गिर पड़ा था।
कृष्णा को पालने में ना पाकर यशोदा नंद और गांव के अन्य लोग कृष्ण को ढूंढने लगे, तो उन्होंने देखा कि वहां राक्षस मरा पड़ा था जिसके ऊपर बालकृष्ण बहुत ही आराम से खेल रहे थे
इस राक्षस का हुआ देखकर एक बार फिर से पूरे गांव के सभी लोग नंद यशोदा सहित हैरान रह गए थे। यशोदा ने कृष्ण को अपने गले दिल लगा लिया था।
इस तरह से एक बार फिर से नन्हे कृष्ण ने एक बहुत बड़े राक्षस का अंत कर दिया था।
Krishna Story राक्षस तृणावर्त का अंत
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