krishna story कृष्ण जन्म
krishna story कृष्ण जन्म: जैसा कि हम सभी को पहले से ही ज्ञात है कि अपने अंत की आकाशवाणी के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को बंदी बना के रखा था। और कंस के जासूस देवकी और वासुदेव पर कड़ी नजर रखते थे। समय बीतता गया और थोड़े ही समय बाद देवकी गर्भवती हुई और समय होने पर उसने एक बहुत ही सुंदर बालक को जन्म दिया। जैसे ही देवकी के पुत्र होने की खबर कंस को लगी, तो कंस ने सोचा यह जो भी हो है तो देवकी की संतान का बड़ा भाई ना। ऐसा सोच कर वह देवकी के पास पहुंच गया। देवकी ने कंस के बहुत हाथ पैर जुड़े उसे मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन कंस नहीं माना। उसने देवकी के प्रथम पुत्र को उठाया और घुमा कर एक बड़े पत्थर पर पटक दिया जैसे धोबी कपड़े धोता है और बच्चे के प्राण निकल गए….।
इसके बाद देवकी को जैसे ही कोई भी बच्चा होता तो कंस के जासूस फौरन कंस को सूचना दे देते, और कंस फौरन आता और देवकी के नवजात शिशु को पत्थर पर जोर से पटकता और उसे मार देता। इसी प्रकार कंस ने देवकी के छह बच्चों को निर्दयता पूर्वक मार डाला।
समय व्यतीत होने पर देवकी फिर गर्भवती हुई ।इस बार देवकी के पेट में बलराम थे। कंस बलराम को भी जन्म लेते ही मार डाले ऐसा कैसे हो सकता था। इसलिए भगवान विष्णु की योजना के अनुसार योग निद्रा ने अपनी शक्ति से बलराम को देख देवकी के पेट से रोहिणी के पेट में रख दिया। रोहिणी वासुदेव की दूसरी पत्नी थी सबको लगा कि देवकी का सातवां गर्भ खराब हो गया है।
समय व्यतीत होने पर एक बार फिर से देवकी गर्भवती हुई। इस बार देवकी अपनी आठवीं संतान की मां बनने वाली थी। अंत जैसे ही कंस को देवकी के गर्भवती होने का पता लगा, उसका डर और बढ़ने लगा और साथ ही साथ उसका अत्याचार भी और बढ़ने लगा। अब उसने वासुदेव को भी जंजीरों से जकडा दिया। दरवाजे पर अब सारा दिन-रात चौकीदार पहरा देते रहते।
दूसरे और यमुना के दूसरे छोर पर एक छोटा सा गांव था जिसका नाम गोकुल था। गोकुल के मुखिया नंद वासुदेव के बहुत ही अच्छे मित्र थे। नंद की पत्नी का नाम यशोदा था। जैसे देवकी के गर्भ में कृष्णा थे। उसी प्रकार यशोदा के गर्भ में भी एक कन्या थी।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था। धरती पर पाप बढ़ता जा रहा था। कंस तथा उसके जैसे अन्य राजा का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। सभी देवता उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। कि कब देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे और कब दानवो का नाश करेंगे।
अंत में वह दिन भी आया जिस दिन देवकी की आठवीं संतान के रूप में विष्णु भगवान ने अवतार लेना था। श्रावण का महीना था। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि। रात हुई अचानक से आसमान में बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी, ठंडी ठंडी हवाएं चलने लगी, पेड़ हिलने लगे, डालिया झूमने लगी, और ठीक आधी रात के 12 बजे देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया।
वैसे तो जन्म के बाद बच्चा रोता है, लेकिन श्रीकृष्ण तो जैसे बांसुरी के सुर की तरह मुस्कुरा रहे थे। वासुदेव देवकी अपने कृष्ण कन्हैया को बस देखे ही जा रहे थे। इस बच्चे के चेहरे पर गजब का तेज था। सुंदर मुख, साबला रंग, होठों पर खेलती मधुर मुस्कान। यह देखकर आकाश से देवता फूल बरसाने लगे। मूसलाधार बारिश होने लगी। यमुना का पानी भी अपने पूरे उफान पर आ गया। समुंद्र की लहरे जोरो से उठने लगी।
देवकी और वासुदेव का हृदय घबरा रहा था कि अभी कोई चौकीदार जाकर कंस को बता देगा, और कंस आकर उनके इस संतान को भी खत्म कर देगा।
अचानक से एक चमत्कार हुआ। वासुदेव की बंधन खुल गए। देवकी और वासुदेव ने देखा कि सारे चौकीदार सो रहे हैं। जेल के दरवाजे भी अपने आप खुल गए। वासुदेव के दिमाग में एक युक्ति आई जैसे उससे खुद श्री कृष्ण ही बताया हो, कि उन्हें ले जाकर वह नंद बाबा के यहां छोड़ दे।
वासुदेव ने नन्हे बालक को टोकरी में लिटाया। और वह टोकरी को सिर पर रखकर वह चल दिए गोकुल। नंद बाबा के घर की तरफ लंबे-लंबे कदम उठाते हुए जैसे ही वह बाहर निकले उन्होंने देखा कि हल्की हल्की बारिश हो रही थी। तेज जल की आवाज आ रही थी। जैसे वह यमुना नदी के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि यमुना नदी पूरे उफान पर थी, परंतु जैसे ही वासुदेव ने अपना कदम यमुना नदी की तरफ बढ़ाया मानो यमुना ने उन्हें आगे जाने का रास्ता दे दिया। वासुदेव तेज तेज कदमों से आगे बढ़ने लगे मूलाधार बरसात अभी भी हो रही थी। शेषनाग ने छात्र की तरह अपना फन उस नन्हे बालक के ऊपर कर दिया।
यमुना को पार कर वासुदेव जल्दी-जल्दी अपने दोस्त नंद के घर पहुंचे। वहां यशोदा ने उसी समय एक पुत्री को जन्म दिया था। और यशोदा सो रही थी वासुदेव ने यशोदा के बगल में नन्हे कृष्णा को सुला दिया, और यशोदा की बालिका को अपने साथ लेकर वह वापस मथुरा की तरफ चल पड़े। यमुना को पार कर वासुदेव फिर से कारागार में आ गए। अचानक से चमत्कार हुआ और वासुदेव के बेड़िया फिर से लग गई। कारागार के दरवाजे बंद हो गए। चौकीदार जाग गए थे। वासुदेव यशोदा के यहां से जिस बच्ची को लेकर आए थे। वह रोने लगी और चौकीदारों ने बिना देर किए यह समाचार कंस तक पहुंचा दिया।
जैसे ही कंस ने सुना की देवकी की आठवीं संतान ने जन्म ले लिया है। वह घबराकर तेज तेज कदमों से कारागार की तरफ चलने लगा। कारागार में आते के साथ ही उसने उस बालिका को अपने हाथों में उठा लिया। देवकी और वासुदेव ने बहुत कोशिश की कंस को समझाने की यह तो एक बालिका है, यह कैसे उसका वध करेगी। परंतु कंस ना माना और उसने उस बालिका को हवा में उछाल कर मारना चाहा। अचानक एक चमत्कार हुआ और कंस के हाथों से छूट कर बालिका हवा में उड़ने लगी। और थोड़ी सी ऊपर आकाश में जाकर उसने एक विराट रूप ले लिया। यह रूप एक देवी का था। जिसके चेहरे पर एक जगमगाता तेज था। लंबे लंबे बाल, चार हाथ। वह एक देवी थी, देवी ने जो जोर के हंसते हुए कंस से कहा “दुष्ट पापी तुझे मारने वाला तो पहले ही जन्म ले चुका है” ऐसा कहकर देवी मां अंतर्ध्यान हो गई। कंस देखता ही रह गया। वह कुछ समझ नहीं पाया, वह सोचने लगा मुझे मारने वाला कहा जन्मा होगा।
krishna story कृष्ण जन्म
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